Thursday, 31 December 2020

Happy New Year 2021

न भारतीयो नव संवत्सरोयं
     तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् ।
यतो धरित्री निखिलैव माता
     तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।।

यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नही है, तथापि सबके लिये कल्याणप्रद हो; क्योंकि सम्पूर्ण धरती सबकी माता ही है... !!

आप सभी को वर्ष 2021 में पदार्पण की मंगलकामनायें !! यह वर्ष आपके लिये आनन्द, आरोग्य, उत्साह, ऐश्वर्यप्रदायक हो... !!

Friday, 25 December 2020

Pt. Madan Mohan Malviya

25 दिसम्बर/जन्म-दिवस
हिन्दुत्व के आराधक महामना मदनमोहन मालवीय

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का नाम आते ही हिन्दुत्व के आराधक पंडित मदनमोहन मालवीय जी की तेजस्वी मूर्ति आँखों के सम्मुख आ जाती है। 25 दिसम्बर, 1861 को इनका जन्म हुआ था। इनके पिता पंडित ब्रजनाथ कथा, प्रवचन और पूजाकर्म से ही अपने परिवार का पालन करते थे। 

प्राथमिक शिक्षा पूर्णकर मालवीय जी ने संस्कृत तथा अंग्रेजी पढ़ी। निर्धनता के कारण इनकी माताजी ने अपने कंगन गिरवी रखकर इन्हें पढ़ाया। इन्हें यह बात बहुत कष्ट देती थी कि मुसलमान और ईसाई विद्यार्थी तो अपने धर्म के बारे में खूब जानते हैं; पर हिन्दू इस दिशा में कोरे रहते हैं।

मालवीय जी संस्कृत में एम.ए. करना चाहते थे; पर आर्थिक विपन्नता के कारण उन्हें अध्यापन करना पड़ा। उ.प्र. में कालाकांकर रियासत के नरेश इनसे बहुत प्रभावित थे। वे ‘हिन्दुस्थान’ नामक समाचार पत्र निकालते थे। उन्होंने मालवीय जी को बुलाकर इसका सम्पादक बना दिया। मालवीय जी इस शर्त पर तैयार हुए कि राजा साहब कभी शराब पीकर उनसे बात नहीं करेंगे। मालवीय जी के सम्पादन में पत्र की सारे भारत में ख्याति हो गयी। 

पर एक दिन राजासाहब ने अपनी शर्त तोड़ दी। अतः सिद्धान्तनिष्ठ मालवीय जी ने त्यागपत्र दे दिया। राजासाहब ने उनसे क्षमा माँगी; पर मालवीय जी अडिग रहे। विदा के समय राजासाहब ने यह आग्रह किया कि वे कानून की पढ़ाई करें और इसका खर्च वे उठायेंगे। मालवीय जी ने यह मान लिया।

दैनिक हिन्दुस्थान छोड़ने के बाद भी उनकी पत्रकारिता में रुचि बनी रही। वे स्वतन्त्र रूप से कई पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे। इंडियन यूनियन, भारत, अभ्युदय, सनातन धर्म, लीडर, हिन्दुस्तान टाइम्स....आदि हिन्दी व अंग्रेजी के कई समाचार पत्रों का सम्पादन भी उन्होंने किया। 

उन्होंने कई समाचार पत्रों की स्थापना भी की। कानून की पढ़ाई पूरी कर वे वकालत करने लगे। इससे उन्होंने प्रचुर धन अर्जित किया। वे झूठे मुकदमे नहीं लेते थे तथा निर्धनों के मुकदमे निःशुल्क लड़ते थे। इससे थोड़े ही समय में ही उनकी ख्याति सर्वत्र फैल गयी। वे कांग्रेस में भी बहुत सक्रिय थे।

हिन्दू धर्म पर जब भी कोई संकट आता, मालवीय जी तुरन्त वहाँ पहुँचते थे। हरिद्वार में जब अंग्रेजों ने हर की पौड़ी पर मुख्य धारा के बदले बाँध का जल छोड़ने का षड्यन्त्र रचा, तो मालवीय जी ने भारी आन्दोलन कर अंग्रेजों को झुका दिया। हर हिन्दू के प्रति प्रेम होने के कारण उन्होंने हजारों हरिजन बन्धुओं को ॐ नमः शिवाय और गायत्री मन्त्र की दीक्षा दी। हिन्दी की सेवा और गोरक्षा में उनके प्राण बसते थे। उन्होंने लाला लाजपतराय और स्वामी श्रद्धानन्द के साथ मिलकर ‘अखिल भारतीय हिन्दू महासभा’ की स्थापना भी की।

मालवीय जी के मन में लम्बे समय से एक हिन्दू विश्वविद्यालय बनाने की इच्छा थी। काशी नरेश से भूमि मिलते ही वे पूरे देश में घूमकर धन संग्रह करने लगे। उन्होंने हैदराबाद और रामपुर जैसी मुस्लिम रियासतों के नवाबों को भी नहीं छोड़ा। इसी से लोग उन्हें विश्व का अनुपम भिखारी कहते थेे। 

अगस्त 1946 में जब मुस्लिम लीग ने सीधी कार्यवाही के नाम पर पूर्वोत्तर भारत में कत्लेआम किया, तो मालवीय जी रोग शय्या पर पड़े थे। वहाँ हिन्दू नारियों पर हुए अत्याचारों की बात सुनकर वे रो उठे। इसी अवस्था में 12 नवम्बर, 1946 को उनका देहान्त हुआ। शरीर छोड़ने से पूर्व उन्होंने अन्तिम संदेश के रूप में हिन्दुओं के नाम बहुत मार्मिक वक्तव्य दिया था... !!

Atal

युग प्रवर्तक वज्रबाहु राष्ट्र प्रहरी अजातशत्रु भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मोत्सव पर उन्हें कोटि कोटि नमन... !!

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

हमारे प्रेरणास्रोत,भारत रत्न,स्वर्गीय पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मोत्सव पर उन्हें कोटि कोटि नमन व हार्दिक शुभकामनाएं... !!

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की आज जयंती है। भारतीय राजनीति को अनंत ऊंचाइयों पर स्थापित करने वाले महान राजनीतिज्ञ, विचारक, भारत माँ के सच्चे सपूत, राष्ट्र पुरुष, राष्ट्र मार्गदर्शक, सच्चे देशभक्त और ना जाने कितनी उपाधियों से पुकारे जाने वाले भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी सही मायने में भारत रत्न थे।
उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विराट था कि जिसके बारे में कितना भी कहें वह कम ही है, क्योंकि जो व्यक्ति जनश्रुतियों में समा गया हो उसका जीवन एक वास्तविक दर्शन बन जाता है। वर्तमान पारिदृश्य में लगता है कि काश, अटल जी जैसा व्यक्तित्व हमारी विचार एवं दिशा विहीन होती राजनीति को नया रास्ता बतलाता किन्तु यह अब यह संभव नहीं है।
युग पुरुष सदियों में जन्म लेते हैं जिनके आभामंडल में क्रांति और चेतना का स्वर फूटता है तथा नवमार्ग का सृजन करता है। एक ऐसा चमत्कारी पुरुष जो कवि एवं अध्यापक पिता कृष्णबिहारी वाजपेयी एवं माता कृष्णादेवी की संतान के रूप में 25 दिसंबर 1925 की ठंड में जन्मा किन्तु उनका यह तेज सम्पूर्ण भारतवर्ष के आधुनिक योद्धा के तौर पर चरितार्थ हुआ।
ग्वालियर के गोरखी विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) से बी.ए.में स्नातक के साथ ही छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक और फिर प्रचारक के तौर पर अटल जी नई लकीर खींचने चल पड़े, और ऐसे चले कि फिर कभी रुके ही नहीं।
अटल बिहारी वाजपेयी जी ने राष्ट्र सेवा के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया और जिसका उन्होंने अपने अंतिम समय तक निर्वहन किया। बेशक अटल बिहारी वाजपेयी जी कुंवारे थे लेकिन देश का हर युवा उनकी संतान की तरह थ। देश के करोड़ों बच्चे और युवा उनकी संतान थे।
अटल बिहारी वाजपेयी जी का बच्चों और युवाओं के प्रति खास लगाव था, इसी लगाव के कारण अटल बिहारी वाजपेयी जी बच्चों और युवाओं के दिल में खास जगह बनाते थे। भारत की राजनीति में मूल्यों और आदर्शों को स्थापित करने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जी का काम बहुत शानदार रहा। उनके कार्यों की बदौलत ही उन्हें भारत के ढांचागत विकास का दूरदृष्टा कहा जाता है।
सब के चहेते और विरोधियों का भी दिल जीत लेने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी अटल बिहारी वाजपेयी का सार्वजनिक जीवन बहुत ही बेदाग और साफ सुथरा था। इसी बेदाग छवि और साफ सुथरे सार्वजनिक जीवन की वजह से अटल जी का हर कोई सम्मान करता था, उनके विरोधी भी उनके प्रशंसक थे।
अटल बिहारी वाजपेयी के लिए राष्ट्रहित सदा सर्वोपरि रहा, तभी उन्हें राष्ट्रपुरुष कहा जाता। अटल बिहारी वाजपेयी की बातें और विचार सदा तर्कपूर्ण होते थे और उनके विचारों में जवान सोच झलकती थी। यही झलक उन्हें युवाओं में लोकप्रिय बनाती थी।
अटल बिहारी वाजपेयी जब भी संसद में अपनी बात रखते थे तब विपक्ष भी उनकी तर्कपूर्ण वाणी के आगे कुछ नहीं बोल पाता था, अपनी कविताओं के जरिए अटल जी हमेशा सामाजिक बुराइयों पर प्रहार करते रहे, उनकी कवितायेँ उनके प्रशंसकों को हमेशा सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती रहेंगी।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पं.दीनदयाल उपाध्याय के सानिध्य में राजनैतिक एवं सामाजिक उत्कृष्टता के गुणों को आत्मसात करते हुए अटल जी पत्रकारिता के क्षेत्र में आकर अपनी वैचारिक मेधाशक्ति से सभी को प्रभावित किया। अटल बिहारी वाजपेयी जी से कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया चाहे वह साहित्य हो या फिर समाज, राजनीति हो या फिर पत्रकारिता वे सभी में उत्कृष्ट रहे।
भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी राष्ट्रधर्म पत्रिका के प्रथम दो संपादकों में रहने के साथ ही पाञ्चजन्य पत्रिका के प्रथम संपादक का दायित्व सम्हालते हुए दैनिक स्वदेश समाचार का संपादन किया। उनकी पत्रकारिता के एक नए अक्स को "वीर-अर्जुन" का संपादन करते हुए समूचे देश ने उनके संपादकीय लेखों, राजनैतिक दृष्टिकोण एवं परिचर्चाओं के स्पष्ट कड़े तेवर को देखा था।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रयोगशाला में तपकर वे राष्ट्रवादी विचारों को मूर्तरूप देने के लिए "वयं राष्ट्रे जागृयाम" का उद्घोष कर राजनीति के समराङ्गण में भारतीय जनचेतना की मुखर आवाज बनने के लिए कूद पड़े।
अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन के शुरुआती दिन काफी संघर्ष मय रहे और उन्हें पहले ही लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वह हर के बाद भी रुके नहीं। बलरामपुर लोकसभा सीट से साल 1957 में विजयी होकर सांसद बने। 1972 में ग्वालियर से चुनाव लड़ा और विजयश्री का वरण किया।
साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के शासनकाल में लगाए गए आपातकाल की कठिन यातना के खिलाफ संघर्ष और फिर जेल ने अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन को पूरी तरह बदल लिया। आपातकाल समाप्ति के बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी जेल से बाहर आए तो उनके तेवर में पहले से अधिक तल्खी और विशाल अनुभव भंडार साफ झलकता था।
साल 1977 में मोरारजी भाई देसाई की जनता पार्टी सरकार में अटल जी ने विदेशी मंत्री के तौर पर भारतीय विदेश नीति का अटल अध्याय लिखा। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय इतिहास के ऐसे प्रज्ञा पुरुष थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में भारत की गौरवशाली परम्परा एवं एकसूत्र वाक्य-"वसुधैव कुटुम्बकम" की विवेचना के साथ सर्वप्रथम हिन्दी में भाषण देकर देश के मस्तक को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने का अद्वितीय कार्य किया।
6 अप्रैल सन् 1980 को जब भारतीय जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ तब वे निर्विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए, जहाँ उन्होंने मुम्बई में देश की राजनीति को कायाकल्पित करने वाला बहुचर्चित अध्यक्षीय भाषण दिया था। उन्होंने गांधीवादी समाजवाद से लेकर महात्मा फुले, समाजवाद, किसानों के हालात, महिला उत्पीड़न सहित अन्य समस्त देशव्यापी समस्याओं की वस्तुस्थितियों पर अपने संपादकीय लेखों की तरह ही विस्तृत प्रकाश डालते हुए राजनीति के मैदान में जूझने और लड़ने का निनाद करते हुए "अंधेरा-छंटेगा-सूरज निकलेगा-कमल-खिलेगा" की भविष्यवाणी की जो भविष्य में विभिन्न राजनैतिक उतार-चढ़ावों के लम्बे समय के बाद सच साबित हुई। अटल जी का प्रत्येक कथन मानो कालजयी था।
समय बीतता गया अटल अपना मार्ग प्रशस्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे। साल 1996 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। भाजपा द्वारा सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद अटल जी देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह सरकार 13 दिन ही चल सकी। उन्होंने अपनी अल्पमत सरकार का त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंप दिया।
1998 में भाजपा फिर दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन 13 महीने बाद तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय जयललिता ने हठ करते हुए समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद उनकी सरकार मात्र 1 वोट से गिर गयी।
लेकिन इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री रहते हुए दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर सम्पूर्ण विश्व को भारत की शक्ति का एहसास कराया, अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए लेकिन उसके बाद भी भारत अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में हर तरह की चुनौतियों से सफलतापूर्वक निबटने में सफल रहा।
अटल बिहारी वाजपेयी ने दूसरी बार प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान से संबंधों में सुधार की पहल की और पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 फरवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू कराई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नयी शुरुआत की, लेकिन कुछ ही समय पश्चात् पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की शह पर पाकिस्तानी सेना व पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ करके कई पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया।
भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गयी जगहों पर हमला किया और पाकिस्तान को सीमा पार वापिस जाने को मजबूर किया। एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी और भारत को विजयश्री मिली।
कारगिल युद्ध की विजयश्री का पूरा श्रेय अटल बिहारी वाजपेयी को दिया गया। कारगिल युद्ध में विजयश्री के बाद हुए 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद भाजपा ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दलों से गठबंधन करके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के रूप में सरकार बनायी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूर्ण किया, इस दौरान देश के विकास के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा अमूल-चूल कदम उठाए गए।
सरकार का कार्यकाल बेशक़ महज पांच वर्ष का ही था लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व में देश ने प्रगति के अनेक आयाम छुए। सरकार ने गरीबों, किसानों और युवाओं के लिए अनेक योजनाएं लागू की। अटल सरकार ने भारत के चारों कोनों को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की शुरुआत की और दिल्ली, कलकत्ता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया।
2004 में कार्यकाल पूरा होने के बाद देश में लोकसभा चुनाव हुआ और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शाइनिंग इंडिया का नारा देकर चुनाव लड़ा लेकिन इन चुनावों में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला।
वामपंथी दलों के समर्थन से काँग्रेस ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र की सरकार बनायी और भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। इसके बाद लगातार अस्वस्थ रहने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया। अटल जी को देश-विदेश में अब तक अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2015 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनके घर जाकर सम्मानित किया था।
यूँ तो अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा किए गए कार्य व उनकी कार्य शैली आज भी हम सब के बीच मौजूद है, लेकिन भारतीय राजनीति के युगपुरुष, श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, कोमलहृदय संवेदनशील मनुष्य, वज्रबाहु राष्ट्रप्रहरी, भारतमाता के सच्चे सपूत, अजातशत्रु अटल बिहारी बाजपेयी 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में हम सबको छोड़ कर चले गए।
अटलजी के निधन से भारत माता ने अपना एक महान सपूत खो दिया लेकिन किसी के सामने हार नहीं मानने वाले और ‘‘काल के कपाल पर लिखने-मिटाने’’ वाली वह अटल और विराट आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई, उनका व्यक्तित्व हिमालय के समान विराट था।
यूँ तो भारत रत्न अटल जी को ईश्वर ने हम सब से छीन लिया किन्तु अपनी बेमिसाल कार्यशैली, वाक्पटुता, मृदुस्वभाव एवं प्रभावी राष्ट्रचिन्तन की अवधारणा की वैशिष्ट्यता के फलस्वरूप वे आज भी हमारी चेतना में विद्यमान हैं, अटल जी स्वयं में एक युग प्रवर्तक थे, एक ऐसे महायोद्धा जिन्होंने राष्ट्र को एकसूत्रता के बन्धन में अपने प्रखर व्यक्तित्व, संयमित जीवन शैली, सभी के प्रति सहजता एवं सामंजस्य के बदौलत अटल बने... !!